Sunday, April 10, 2011

खुदगर्जी की महक

जब खुदगर्जी की बू रिश्तों के गुलशन में छा जाती है
तब समझ लीजिये उस गुलिस्ताँ में तबाही आ जाती है

1 comment:

  1. कटु सत्य है, मिट्टी कि ही ये दुनिया है मिट्टी के ही लोग बने हैं !
    निर्मल कोठारी

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