Tuesday, May 10, 2011

उलझी का छोर मिलता नहीं

ज़िन्दगी खुद एक पहेली है दूसरों की पहेली कहाँ सुलझे 
अपनी उलझी का छोर मिलता नहीं दूसरों का कहाँ सूझे

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