Monday, May 23, 2011

मेहर बरसी


कभी सोचता था क्या में लिख पाउँगा 
ज़ज्बात का सैलाब ज़माने में बहाऊंगा 
परवरदिगार की ऐसी मेहर बरसीएक  
रोज़ उसके दर को कलम से खट खटाउंगा   

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