Pages
My FACE BOOK Page
Home
About Me
Monday, May 23, 2011
मेहर बरसी
कभी सोचता था क्या में लिख पाउँगा
ज़ज्बात का सैलाब ज़माने में बहाऊंगा
परवरदिगार की ऐसी मेहर बरसी
,
एक
रोज़ उसके दर को कलम से खट खटाउंगा
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment