ए माँ जबसे तेरी कोख में मैं आई
तेरी ही धडकन मेरे दिल में समाई
मुझको भी तुत्लाने का एक मोका देना
करूं हवाओं को महसूस देखूं रोशनाई
तेरे जिस्म से जिस्म मेरा बना है
मेरे मौत का फरमान तू ही सुनाई
माँ के नाम से जुडी है ममता की मूरत
वही माँ आज क्यूँ कातिल कहलाई
तेरे प्यार की में हूं एक निशानी
मेरे प्यार की क्यूँ बलि चडाई
अश्कों से सींचती थी ज़ज्बात की फसल
आज वही आँखें क्यूँ न भर आई
डोलियों में होती है बेटियां विदा
कोख से ही की तुने मेरी विदाई
बेटी के जिस्म को नाली में बहाया
न कफन हुआ नसीब न चिता जलाई
नेमत हुं खुदा की खता मेरी क्या है
क्यूँ समाज के गुनाहों की सजा मैंने पाई
ए बेटी हर लम्हा तुझे मैंने महसूस किया है
पर अजीजों ने तुझे मिटने की कसम दिलाई
सौदागरों के समाज का हिस्सा बनी हुं
दहेज़ की दहाड़ से दबी मेरी दुहाई
मेरे भी सिने में ममता का दरिया है बहता
पर इसी समाज ने मेरी ममता की मईयत उठाई
फिर भी मैं गुनहगार हुं तेरी ए बेटी
एक बेबस माँ आज बनी है तमाशाई
पारसा होने का बड़ा नाज़ था का जिनको
आज कहाँ गई उनकी परसाई
कोई तो समाज को बदलने की सोचो
वरना एक दिन कहर बरसायेगी खुदाई
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