उम्मीद क्यूँ चिढ़ा रही
आज मौत क्यूँ लुभा रही
इन निगाहों ने बर्बाद किया
जख्मों को आबाद किया
कितने सितम बरसा रही
आज मौत क्यूँ लुभा रही ….
तेरी चाहत की आस है
बरसों की ये प्यास है
ज़िन्दगी मुझे तडफा रही
आज मौत क्यूँ लुभा रही ….
ख्वाब्बों में मेरे पास है
तेरा चेहरा भी उदास है
शायद मुझे बहका रही
आज मौत क्यूँ लुभा रही ….
सांसो में महके फूलों की तरहा
ख्यालों में तू झूलों की तरहा
मेरी सहर तुझे बुला रही
मेरी शाम अश्क बहा रही
आज मौत क्यूँ लुभा रही.......
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