Sunday, August 14, 2011

तमाम शहीदों के ख्वाबों के हम सब हत्यारे है

तमाम शहीदों के ख्वाबों के हम सब हत्यारे है
फिर भी अपने आप को हम कितने प्यारे हैं
तमाम शहीदों के ख्वाबों...................

कितनी माताओं ने खुशी से कोखें उजड़ी थी
कितनी अबलायें उन शहीदों को प्यारी थी

हम बेशर्म बेहया खुदगर्जी के मारे हैं
तमाम शहीदों के ख्वाबों................

लहू के दरिया से आज़ादी की कीमत चुकाई थी
तब कहीं जाकर हमने आज़ादी देख पाई थी

आज़ादी का परिहास बना कर हम सब हारे हैं
तमाम शहीदों के ख्वाबों................

कभी ना होता उन शहीदों को ऐसा देश गंवार
हमने उनके ख्वाबों की भारत माता को मारा

पूरा हिंदुस्तान अब चंद कमीनों के सहारे है
तमाम शहीदों के ख्वाबों................
-हेमन्त

No comments:

Post a Comment