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Sunday, April 10, 2011
खुदगर्जी की महक
जब खुदगर्जी की बू रिश्तों के गुलशन में छा जाती है
तब समझ लीजिये उस गुलिस्ताँ में तबाही आ जाती है
1 comment:
Anonymous
April 10, 2011 at 9:24 AM
कटु सत्य है, मिट्टी कि ही ये दुनिया है मिट्टी के ही लोग बने हैं !
निर्मल कोठारी
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कटु सत्य है, मिट्टी कि ही ये दुनिया है मिट्टी के ही लोग बने हैं !
ReplyDeleteनिर्मल कोठारी