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Monday, April 11, 2011
फकत जुस्तजू
फकत जुस्तजू से यार नहीं बनते
फकत लफ़्ज़ों से
अशआर नहीं बनते
तमीज ओ तहजीब से सीरत को सजाइए
फकत यूँ ही कोई तलबगार नहीं बनते
1 comment:
Anonymous
April 12, 2011 at 1:22 AM
वाह वाह , बहुत खूब ! निर्मल कोठारी
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वाह वाह , बहुत खूब ! निर्मल कोठारी
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