झुके जो गेर के आगे ऐसा सर नहीं रकते
डर के सिकुड जाये ऐसा जिगर नहीं रखते
उम्र गुज़रे फलक में ऐसा होश्ला रखते है
चंद लम्हों में थक जाए ऐसे पर नहीं रखते
सबसे चाहत, है यही मेरी इबादत का जरिया
बेजां तल्खियत का जेहन पे असर नहीं रकते
डर के सिकुड जाये ऐसा जिगर नहीं रखते
उम्र गुज़रे फलक में ऐसा होश्ला रखते है
चंद लम्हों में थक जाए ऐसे पर नहीं रखते
सबसे चाहत, है यही मेरी इबादत का जरिया
बेजां तल्खियत का जेहन पे असर नहीं रकते
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