Friday, November 11, 2011

हम पत्नी को अक्सर परिहास का पात्र क्यूँ बनाते हैं

हम पत्नी को अक्सर परिहास का पात्र क्यूँ बनाते हैं 

जिनके साथ गुजरेगी जिंदगी फिर उन्ही से क्यूँ बोख्लाते है 


अपनों को छोड अपना कहती हमें हम उसे क्यूँ आजमाते है 


मासूमियत और ममत्व की मूर्ति को खोफनाक क्यूँ बताते हैं 


मकाँ को घर बनाए जो उसी को हम ज़माने में क्यूँ चिडाते है 


जिंदगी के मायने को अंजाम देती, उसीके मायने को क्यूँ भूल जाते हैं 


कई सवाल मुझे परीशां किये रहते और कई बार हम घबराते है 

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