Sunday, May 27, 2012

“तुम्हारी माँ क्या कहती है “


दोस्तों अपनी कलम से एक नया प्रयोग किया है शायद आप लोगों को पसंद आए
इसकी प्रेरणा मुझे एक विज्ञापन से मिली 

College में seniors रेगिंग करते वक्त एक बेहद सीधे साधे और खामोश खड़े एक लड़के को पूछते है तुम्हारी माँ क्या कहती है और वो लड़का जवाब देता है


मेरी माँ कहती है बेटा........ज़माने के सितम को जहन में ना बसाना, सोच बीमार हों जायेगी. 
मेरी माँ कहती है बेटा........अज्जिजों में अपनों की पहचान करना, ठोकरों से बच पाओगे 
मेरी माँ कहती है बेटा........होश्लों को काबिलियत से सींचना, वो मज़बूत होंगे 
मेरी माँ कहती है बेटा........चाहत में रूह की हिस्सेदारी रखना, धोखा खाने से बच जाओगे 
मेरी माँ कहती है बेटा........अपने पाओं को मिटी और धुल चखाते रहना, गिरने से बच जाओगे 
मेरी माँ कहती है बेटा........अपनी सीरत को गुल के मानिंद बनाना, खार का खोफ मिट जायेगा 
मेरी माँ कहती है बेटा........इज्ज़त कमाना, कभी खरीदने की कोशिश ना करना 
मेरी माँ कहती है बेटा........अपने जज्बात को जगाए रखना, वरना हेवान जाग जायेगा 
मेरी माँ कहती है बेटा........अपने जमीर हिफाजत करना, आत्मग्लानी से बच जाओगे 
मेरी माँ कहती है बेटा........जमीं से जुड कर दुनिया की तमाम ऊँचाइयों को छूने की कोशशि करना 

इतना कहते कहते उस लड़के का गला भर आया और बोला मेरी माँ सदा मुझे ख्वाबों में बहोत कुछ कहती है हकीकत में तो वो मेरे बच्चपन में ही भगवान को प्यारी हों गई थी
-
हेमन्त 

Note-
ये पूरा काल्पनिक है

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