Sunday, August 5, 2012

घुटन भरी दुनिया के अंदर

घुटन भरी दुनिया के अंदर 
बचा कहाँ अब कोई कलंदर 

बसा इमारती जंगल के अंदर 
बस इतना ही तो बदला बंदर 

कोखें उजाड़ी उजाड़ी मांगें 
हासिल क्या किया सिकंदर 

कितने दरिया निगल रहा 

फिर भी प्यासा है समंदर

आइना बनता है सबका
झांक जरा तू अपने अंदर

पाक अगर है जहन तेरा
तू भी सुंदर में भी सुंदर 

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