Monday, January 13, 2014

में उन लम्हों को फिर से जीना चाहता हूँ

दोस्तों ये रचना अपनी जिन्दगी पे या यूँ कहिये आम आदमी के जीवन पे बहोत पहले लिखी थी शायद मेरी बात आपके दिल तक पहुंच पाए ...अगर पहुंचे तो आप सब का आशीर्वाद चाहूँगा 

में उन लम्हों को फिर से जीना चाहता हूँ 
जिन्हें अपनी उम्मीद से बहोत कम पाता हूँ 

जवानी के रंगों को पेशे ने पोंछ डाला 
आज उनसे अपनी निगाहें चुराता हूँ 

बच्चों का तुतलाना रूठना मान जाना 
यादों के काफिले में ढूंढता जाता हूँ 

आज की ख्वाइशों को बेरहमी से मारा
कल के ख्वाब होशो-हवास में सजाता हूँ

हो जाए मुक्कमल बच्चों की जिन्दगी
अपनी जिन्दगी हर हाल में निभाता हूँ

दम घुटता है अजीजों के नादाँ मशवरों से
खामोश निगाहों से फलक देखे जाता हूँ

यारब मजबूरियों को एक बार समेट ले
सांसों को अपने अंदाज़ में लेना चाहता हूँ
-हेमन्त

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