Wednesday, July 13, 2011

आतंक

आतंक 

आतंक के साये में नशेमन बना लिया 
अफ़सोस हमारी कौम ने ये क्या किया 

आज लहू को लहू की प्यास क्यूँ है 
शायद जंगले ने दायरा बड़ा दिया 

हैरानिय अब करती नहीं हेराँ
मज्बुरिओयों ने सब को बुत बना दिया
   
सांसों से दहसत की महक आ रही 
तमाम राहों को मौत का पता बना दिया 

चुन चुन के तोड़े मुफ्लिशों की सांसे 
ये कैसा जहर हवाओं में मिला दिया 

एक बार  मजहब को मजहब बनाइये 
मकसद को आपने क्यूँ मज़हब बन लिया 
- हेमंत 

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