आतंक
अफ़सोस हमारी कौम ने ये क्या किया
आज लहू को लहू की प्यास क्यूँ है
शायद जंगले ने दायरा बड़ा दिया
हैरानिय अब करती नहीं हेराँ
मज्बुरिओयों ने सब को बुत बना दिया
सांसों से दहसत की महक आ रही
तमाम राहों को मौत का पता बना दिया
चुन चुन के तोड़े मुफ्लिशों की सांसे
ये कैसा जहर हवाओं में मिला दिया
एक बार मजहब को मजहब बनाइये
मकसद को आपने क्यूँ मज़हब बन लिया
- हेमंत
umda
ReplyDelete